पवित्र बंधन
पवित्र बन्धन
जीवन की इस डगर पे रिश्ते बने हजार
मां बाप बेटा बेटी दोस्त और रिश्तेदार
हर वक़्त बन्धा रहता इंसान, करता इन से प्यार
भूल ही जाता है कि ये रिश्ते बस बन्धन हैं
क्यूं आया है, कहां जाना है, करने हैं क्या काम
ये मेरा ये तेरा करते करते गुजर रहे सुबह शाम
भूल बैठा उस मदारी को जिसके हाथ की कठपुतली है
जाना वापस वहीं है यही उसकी मर्ज़ी है
आखिर सफर की मंजिल को तो पाना है
इन बंधनों को तोड़ के पवित्र बंधन फिर निभाना है।
आभार - नवीन पहल - २१.०९.२०२३ 🙏🌹❤️
# दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता
Shashank मणि Yadava 'सनम'
22-Sep-2023 10:27 AM
खूबसूरत भाव
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Reena yadav
22-Sep-2023 07:43 AM
👍👍
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